Sunday, December 31, 2023
भई संतन की भीर……!
भई संतन की भीर…..!
बचपन मे तुलसीदासजी का एक दोहा काफी बार दोहराता था मैं ! लेकिन जवानी मे उसी दोहे की बहुत धज्जियां भी उडा चुका था मैंही ! ओरिजिनल दोहा था - ‘चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसैं, तिलक करत रघुबीर !’
आज सुबह अमृतकलश के स्वागत समारोह, या यूं कहिये प्रभु श्रीरामनाम से गूंजता जुलूस देखकर मुझे केवल संतोंकी भीर हि नजर आई. हर्ष और उल्हास से हरकोई बूढा जवान उमंग भरे जयजयकार कर रहा था, हर बिल्डिंग के सामने अतिसुंदर रंगोलियां मन को लुभा रही थीं, हर कोई अपने सुंदर वस्त्रप्रावरण पहने, पूर्ण जोश और आत्मविश्वास से जुलूस मे सम्मिलित देख यह बूढा सिपाही गदगद हो गया. वाकई पीछले आठदस सालोंसे हर भारतीय गर्व से पुलकित हुवा नजर आ रहा है. इससे पहिले काफी वर्षोंतक हम लोगोंको निराशा और ‘कुछ भी अच्छा नही हो सकता इस देश का’ ऐसी विवश मानसिकता से मानों जकड लिया था. हालांकी भगवान को यह मंजूर नही था. सनातन और विशेशकर हिंदू द्वेष किसी को भी रास नही आता था और औसत नागरिक निराशा महसूस करता था.
लेकिन अब जमाना बदल गया है, बदल रहा है ! एक नया विश्वास का माहौल हमें वाकई रामराज्य का एहसास दिलायेगा ऐसी मेरी अक्षुण्ण भावना है. और जैसे एक सीनियर सिटिझन ने आज कहा, यह सब हमारी आंखों के समक्ष होना हमारा सौभाग्य है !
जय श्रीराम, जय जय श्रीराम ! ! !
रहालकर
३१ डिसेंबर २०२३