Friday, December 10, 2021

 

मैं सब को आशीष कहूंगा !

 कुछ वर्ष पूर्व पढी हुई एक सुंदर कविता आपको भी खूब भाएगी इस विश्वास के साथ पुन: दोहरा रहा हूं, लुफ्त लीजियेगा ! इस काव्य मे एक गहरा दर्शन छुपा है, जिसे पीछली पीढी के बुजुर्ग कवी श्रीमान नरेन्द्र दीपकजी ने लिखा था और सभी को, उनके प्रतिद्वंद्वियों को भी, आशीष कहे थे. 

वह कविता कुछ इस प्रकार है - 

“मेरे पथ पर शूल बिछाकर दूर खडे मुस्काने वाले,
दाता ने अगर संबंधी पूछे , पहला नाम तुम्हारा लूंगा ! 
        
           आसूं , आहें , और  कराहें
            ये सब मेरे अपने ही हैं,
            चांदी मेरा मोल लगाए 
             शुभचिंतक ये सपने ही हैं. ! 

मेरी असफलता की चर्चा    घरघर तक पहुंचाने वाले,
वरमाला यदि हाथ लगी तो    उसका श्रेय तुम्हीं को दूंगा. !
             
             सिर्फ उन्ही का साथी हूं मैं
             जिनकी उम्र सिसकते गुजरी
             इसी लिये बस अंधियारे से
             मेरी बहुत दोस्ती गहरी.  !

मेरे जीवित अरमानों पर  -  हंस हंस कफन उढाने वाले
सिर्फ तुम्हारा कर्ज चुकाने - एक जन्म मैं और जीयूंगा  !   

              मैने चरण धरे जिस पथ पर
              वही डगर बदनाम हो गई
              मंजिल का संकेत मिला तो
              बीच राह मे शाम हो गई.  !

जनम जनम के साथी बनकर  मुझसे नजर चुराने वाले ,
चाहे जितना श्राप मुझे दो - मैं सबको आशीष कहूंगा - 
मैं सब को आशीष कहूंगा. ! ! 

प्रेषक - डॉ. प्र. शं. रहाळकर
पुणे १० डिसेंबर २०२१

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