Monday, September 19, 2016
एक स्फुट
आज यह चिंतन हिन्दी भाषा मे प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहूंगा ! वास्तव मे यह अजनबी महसूस नही होना चाहिये, गोया काफ़ी समय के बाद यह कोशिश करने का साहस जुटा रहा हूँ !!
कल शाम चिंतन में मश्गूल था और कुछ संस्कृत पंक्तियाँ याद आ गईं ! और उनका सम्बंध ईसा मसीह से जोड़ने का विचार दिमाग़ में बस गया !!
तीन संस्कृत वचनों में प्रथम है - “तस्यैवाहम् “ जिसका मतलब है - ‘ मैं उसका हूँ ‘ ; दूसरा है - “ तवैवाहम्” अर्थात् ‘ मैं तुम्हारा हूँ ‘ और तीसरा वाक्य है - “ त्वामेहम् “ याने ‘तुमही मैं हूँ ‘ !! ( यह तीनों पंक्तियाँ ईश्वर के प्रति हैं !!!)
अब ईसा का इनसे सम्बंध कुछ इस प्रकार जोड़ा जा सकता है :- १. जब ईशूने पहली बार घोषणा की वह थी -- मैं ईश्वर का प्रेषित हूँ - I Am the Messenger of God !
२. फिर कहा - मैं ईश्वर का पुत्र हूँ - I Am the Son of God
और बाद में पूर्ण ज्ञान के बाद घोषणा की, ३. मैं और स्वर्गमे विराजमान मेरे पिता और मैं एकही हैं - I and Father in the Heaven are One !!!
इसी विचार की अगली कड़ी है हमारे द्वैत, विशिष्ट अद्वैत और अद्वैत का सिध्दांत, जो रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य और श्रीमत् शंकराचार्यजी की देन है और ऊपरनिर्देषित वाक्योंसे मिलतीजुलती लगती हैं !
आज बस इतना ही !
भवदीय,
डाक्टर प्र. शं. रहाळकर
१८ सितंबर २०१६
लंदन
आज यह चिंतन हिन्दी भाषा मे प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहूंगा ! वास्तव मे यह अजनबी महसूस नही होना चाहिये, गोया काफ़ी समय के बाद यह कोशिश करने का साहस जुटा रहा हूँ !!
कल शाम चिंतन में मश्गूल था और कुछ संस्कृत पंक्तियाँ याद आ गईं ! और उनका सम्बंध ईसा मसीह से जोड़ने का विचार दिमाग़ में बस गया !!
तीन संस्कृत वचनों में प्रथम है - “तस्यैवाहम् “ जिसका मतलब है - ‘ मैं उसका हूँ ‘ ; दूसरा है - “ तवैवाहम्” अर्थात् ‘ मैं तुम्हारा हूँ ‘ और तीसरा वाक्य है - “ त्वामेहम् “ याने ‘तुमही मैं हूँ ‘ !! ( यह तीनों पंक्तियाँ ईश्वर के प्रति हैं !!!)
अब ईसा का इनसे सम्बंध कुछ इस प्रकार जोड़ा जा सकता है :- १. जब ईशूने पहली बार घोषणा की वह थी -- मैं ईश्वर का प्रेषित हूँ - I Am the Messenger of God !
२. फिर कहा - मैं ईश्वर का पुत्र हूँ - I Am the Son of God
और बाद में पूर्ण ज्ञान के बाद घोषणा की, ३. मैं और स्वर्गमे विराजमान मेरे पिता और मैं एकही हैं - I and Father in the Heaven are One !!!
इसी विचार की अगली कड़ी है हमारे द्वैत, विशिष्ट अद्वैत और अद्वैत का सिध्दांत, जो रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य और श्रीमत् शंकराचार्यजी की देन है और ऊपरनिर्देषित वाक्योंसे मिलतीजुलती लगती हैं !
आज बस इतना ही !
भवदीय,
डाक्टर प्र. शं. रहाळकर
१८ सितंबर २०१६
लंदन